शुक्रवार, 22 मई 2009

प्रधानमंत्री जी जवाब दीजिये ......



पिछले पखवारे हमने अपने इस ब्लॉग पर विनायक सेन के पत्नी का साक्षात्कार पोस्ट किया था आप जानते ही है कि विनायक जेल में है विगत १४ मई को उनके कारावास के दो साल पूरे हुए. इस मौके पर पूरी दुनिया में इनकी रिहाई की मांग को लेकर विरोध-प्रदर्शन हुए यह कितने शर्म की बात है कि एक तरफ पूरा देश विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के गठन में व्यस्त है वही देश से बाहर सैकडों मानवाधिकार कार्यकर्त्ता हमारे ही देश के एक डॉक्टर के मानवाधिकार हनन को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे | आप जो यह तस्वीर देख रहे है यह लन्दन, बोस्टन में भारतीय दूतावास के बाहर हाथ में तख्तियां लटकाए मानवाधिकार कार्यकर्ता, बुद्धिजीवी,चिकित्सकों का मजमा है जो विनायक सेन के रिहाई को लेकर अपना विरोध जता रहे है . चिकित्साजगत के प्रतिष्ठित जोनाथन अवार्ड से सम्मानित किये गए डॉक्टर सेन नक्सलियों के साथ मिलकर काम करने के आरोप में छत्तीसगढ़ स्टेट पब्लिक सेक्युरिटी एक्ट के तहत पिछले २ साल से जेल में बंद है पीपुल यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टी के इस सदस्य की गलती यही थी की छत्तीसगढ़ के सुदूर पिछडे इलाके में गरीबो के जागरूक करने का प्रयास कर रहे थे हाल ही में अपने सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस वी आर कृष्ण अय्यर ने डा विनायक मामले में प्रधानमंत्री डा मनमोहन सिंह को 17 अप्रैल को पत्र लिखकर कहा थाः ‘मै आपका ध्यान उस गंभीर अन्यायपूर्ण मामले की ओर आकर्षित करना चाहता हूं जो भारतीय लोकतंत्र के लिये शर्मनाक है।’ क्या अ़ब भी कुछ कहने के लिए बाकी है जनाब ..........जब सुप्रीम कोर्ट के जज यह कह चुके की यह घोर अन्याय है ????? कुछ तो जवाब दे जस्टिस अय्यर के पत्र का ? माननीय प्रधानमंत्री जी??????

मंगलवार, 5 मई 2009

They just want to keep my husband in jail

( डा. विनायक सेन. वे क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज, वेल्लोर में पढ़े चिकित्सक हैं ,पीपुल यूनियन ऑफ़ सिविल लिबर्टी के इस सदस्य को नक्सालियों के साथ मिलकर काम करने के आरोप में छत्तीसगढ़ स्टेट पब्लिक सेक्युरिटी एक्ट के तहत पिछले साल से जेल में बंद करके रखा गया है ,पर्याप्त साक्ष्य होने के बावजूद , उनकी रिहाई नही की जा रही है ,प्रस्तुत है उनकी पत्नी के साथ एक बातचीत)

-लाबोनिता घोष

May 14 will be two years since Dr Binayak Sen, arrested for his alleged links with Naxalites, was put into a Chattisgarh jail. His complaints of ill-health - his doctors have said he could have a heart attack any minute -- have finally got the Supreme Court to ask the state government to provide him with proper health care. But the state has tried to impede the course of the case, says his family. Ilina Sen, Binayak's wife, spoke to DNA on a recent visit to Mumbai.
How is Dr Sen's health right now?
Binayak was diagnosed with angina in 2003-04. When he complained of chest pain in jail, we wanted an angiography done. But it took two and half months to get a court order just to have an ECG. In February, Binayak put in an application to go to Christian Medical College, Vellore, for treatment. A local specialist, Ashish Malhotra, said Binayak needed an angio. The police asked Dr Malhotra why he had recommended Vellore; wasn't there any place in Raipur? So the doctor recommended some local places. Now the Public Prosecutor doubts that Binayak is really ill. Binayak has lost a lot of weight (almost 22 kg, say some reports). When we complained, we were told his weight is now correct. They doubt he has a heart condition and Dr Malhotra's credentials, though he is Raipur's best cardiologist.

Does Dr Sen want to go to Vellore because of a threat to his life?
If the police keep interfering with the treatment and with the doctor, how can you be really secure? How can you put your life in the hands of people when the police are breathing down their necks? As an old student of Vellore, Binayak has certain entitlements there.

Where is the case going?
It's not going anywhere -- 65 witnesses have deposed and nothing incriminating has come of it. Now only the police are left. We've applied for bail. Let's wait and see.

All the national and international support for Dr Sen has not worked?
Unfortunately, Chattisgarh CM Raman Singh has made it a matter of pride to keep Binayak inside. Binayak has said repeatedly that he is not a Naxalite, and does not believe in violence. He believes in social equity. If that makes you a criminal, what can you do? Singh also says that in Chattisgarh (Sen's incarceration) is a non-issue -- all the noise is abroad. What he doesn't say is that there is a lot of support nationally. Earlier, he kept saying there is evidence against Binayak. But now that that has been proven to be untrue, I think he just wants to save face by keeping Binayak in jail

What is your opinion about acts like the Unlawful Activities (Prevention) Act, under which he has been held?
These acts leave no space for grey areas. You are either for something or against it. In a more bizarre instance, a doctor was arrested because his prescription was found in the pocket of a Naxalite killed in an encounter. If a patient comes to a doctor, is the doctor supposed to first check his political antecedents?

How has the family coped?
There are four people in four different places [Ilina lives and teaches in Wardha and her two daughters live in Mumbai]. We have a very strong bond, that's kept us going.

What next?
By Indian standards, two years is no time at all. With so much support, I just hope somebody somewhere comes to their senses.
(डीएनए से साभार )

सोमवार, 4 मई 2009

रोती भारत माँ और लूटता मानवाधिकार

पिछले सप्ताह "कतरनें" में "मेरी बहन शर्मीला" पढ़ा। किसी भी संवेदनशील, मानवीय ह्रदय को झकझोर देने लायक सारी बाते थी इसमें । इस आलेख के लिए आवेश जी बधाई के पात्र है। इसे पढ़ते ही मन उद्वेलित हो उठा। व्यथित मन इतना ज्यादा कभी नहीं रोया था। तत्काल ही आवेश जी से बात हुई और शर्मीला के समर्थन में कुछ करने की इच्छा। मजदूरों के हक़ और अधिकार के लिए लड़ी गई लडाई के १२० वीं वर्षगाठ से अच्छा और क्या हो सकता था इसी का परिणाम है की आज यह ब्लॉग आपके सामने है ...........उसी रात लिखी एक कविता की पहली पोस्टिंग भी हुई।
इस ब्लॉग के माध्यम से हमें उन मुद्दों को उठाना है जो मानवाधिकार हनन से जुड़े हो तथा उन जैसे लोगो को एक मंच प्रदान करना है जिन्हें लगता है की उनकी आवाज गूंगी-बहरी सरकार और मीडिया नही सुन रही है वो अपना दर्द यहाँ बाँट सकते है। इस ब्लॉग से मैं उन सभी लोगो को आमंत्रित करता हूँ जिन्हें देश प्रिय हैं , जो भारत के है और भारत उनका है। जिन्हें गाँधी आज भी अच्छे लगते है। जो शर्मीला को जानते है व इसके लिए कुछ करना चाहते है, उसके समर्थन मे हर उठने वाले हाथ को ताकत देना चाहते है । कलम से ही सही ! यथासंभव जितना हो सके अधिक से अधिक लोगो तक, सरकार के पास और कानून नियंताओं तक यह बात पहुचाई जाए की विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र मे आज भी मानवाधिकार बूटों तले कुचला जा रहा है ,जहाँ मानवाधिकार सशस्त्र बल की रखैल बन आसाम में मुजरा कर रही हों , संगीनों के साए मे जहाँ बचपन घुट रहा हो। हथियारों के दम पर जहा गाँधी जी के बेटियों की अस्मत लूटी जा रही हो। महात्मा बुद्ध के विचार जहाँ हिचकी ले रहा हो । मानवाधिकार का यह खेल गाँधी के उस देश मे पिछले कई दशको से जारी है ................वहां कैसी सरकार.....???? और कौनसा मानवाधिकार ?????? बिगत आठ वर्षो से भारतमाता की एक बेटी उत्तर-पूर्व के लोगो के अस्मिता ,आत्म -सम्मान और गरिमा वापस दिलाने के लिए लगातार संघर्षरत है। क्या हमारा दायित्व नही बनता की उसके हाथ को मज़बूत करें ??? उसे नैतिक शक्ति दे ! मैं देश के उन युवायों से कवि पाश की इन पंक्तियों के साथ आह्वान करता हूँ की .......
सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शान्ति से मर जाना
न होना तड़प का !!
सव सहन कर जाना
सवसे खतरनाक होता हैं
हमारे सपनो का मर जाना
बिलकुल सही है हमें अपने सपनो को मरने नहीं देना है बलिक दूसरो को बुनने में मदद करना है। हम उनसभी से आह्वान करते है की उत्तर-पूर्व में जबतब लागु कर दिए जाने वाले सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून -१९५८ को पूर्णतः हटाने के लिए पिछले आठ सालो से भूख हड़्ताल पर बैठी "इरोम शर्मीला" के समर्थन में आगे आयें। अपने तरीके से विरोध दर्ज कराये। उसे ताकत दे ,उसके गांधीवादी तरीके के पक्ष में खड़े हो सरकार को झूकने को मजबूर करे . पत्र लिखे, नुक्कड़ पर जुटे, गोष्टी करे, शिकायत करे. दोस्तों को बताये की इरोम शर्मीला के साथ क्या हो रहा है??? हमें आपनी आवाज विश्व पटल तक पहुचानीं हैं ताकि महिला अधिकारों का, उनके अस्मिता की ,उनके अधिकारों के हनन को रोका जा सके। मै मानता हूँ की हर समय की अपनी चुनोतियाँ होती है चाहे वह यथार्थ चेतना, जनचेतना, जनांदोलन, जनमानस के लड़ी जा रही कोई लडाई ही क्यो न हो। हर समय अपने विचारो को अपने विचारो से ही मुठभेड़ होती रहती है। आज हम चका-चौंध और भागदौड में इतने मस्त हो गए है की हमें अपने आसपास ,पड़ोस,देश समाज के बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं । दो कमरे के फ्लैट में सिमटा आदमी आज स्थितिप्रज्ञ बन कर रह गया है आज सव सुरक्षित जीवन चाहते है लेकिन वाह्य यथार्थ के आतंक ने व्यक्ति को एक आयामी,कमज़ोर और पंगु बना दिया है हम जितने ही अपने आपको सुरक्षित करने का प्रयास करते है उतनी ही असुरक्षा और भय अपने आस पास बुनते रहते है बिना समाज को सुरक्षित किये हम सुरक्षित नहीं रह सकते ....जरुरी है समाज के मुद्दों पर पर कदमताल करना, अतः जागे ,उठे और शर्मीला की ताकत बनें खुद की न सोचकर देश, समाज की सोचे आज स्थिति यह है की
लोग संगमरमर हुए/ह्रदय हुए इस्पात
वर्फ हुई संवेदना ख़तम हुई सब बात।
हमें खुद के स्वभिमान को जगाना है दुष्यंत कुमार के शव्दों में ...
जम गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए .......
आज शर्मीला अकेले अपने दम पर अपने भागीरथी प्रयासों से सरकार को नाको चने चबाने को मजबूर कर दिया है हमें भी चाहिए की उसका हाथ से हाथ और कदम से कदम मिलाकर साथ दे ।मैं एक बार फिर उन नवयुवको से ,छात्रो से आह्वान करता हूँ की जिस तरह सतर के दशक में देश में भूचाल ला दिया था आज दुवारा वो हुंकार भरे .... आज मै उस माँ को भी सलाम करता हूँ जिसने इतनी बहादुर, जांबाज,और दिलेर बेटी पैदा की।
कवि पाश की इन पंक्तियों के साथ की साथी हम लड़ेगे .........हम आपके साथ है .....
हम लडेंगे साथी,अपने स्वभिमान के लिए
जब बन्दूक न हुई तो तलवार होगी
जब तलवार न हुई ,लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ ,लड़ने की जरुरत होगी
हम लडेंगे जबतक
दुनिया में लड़ने की जरुरत बाकि है ....
हम लडेंगे ......???
की लड़ने के बगैर कुछ भी नहीं मिलता
हम लडेंगे की अभी तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेगे अपने सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वालों की याद जिन्दा रखने के लिए
हम लडेंगे .....हम लडेंगे साथी
राकेश पाठक
बयावर,अजमेर

शनिवार, 2 मई 2009

क्या करूँ माँ ?

-आवेश

मेरी ये पोस्टिंग बहन शर्मीला को समर्पित है ,हम उनके सत्याग्रह का शत शत वंदन करते हैं ,और इश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें असीम शक्ति दे |



आसमान में बादल नही
चाँद खिला है माँ
पानी
बादल बरसाते हैं
चाँद नही
हम फ़िर छले गए -सावन के आसमान से
पीछे की पहाडी
कब हरी होगी माँ ?
कब आए थे पश्चिम के मेघ ?
नाले चल रहे होंगे आज भी शायद घर के पीछे
कब लौट कर आएगा वो लड़का
जो पहले गोलियों से खेलता था ,आज भी खेलता है
बादल कहीं नजर नही आते
मिटटी!
तुम्हारे चेहरे की भांति /सूखी हुई
और आँखें /टकटकी लगाये देखती हैं
निष्ठुर आसमान की ओर
कभी सूरज कभी चाँद मुँह चिढाते हैं माँ
हम बौछारों के मौसम में
धूप से बचाव के छाते लगाते हैं |