(हम अपने ब्लॉग की पहली पोस्टिंग अजमेर में रह रहे मित्र राकेश पाठक की इस कविता के साथ कर रहे हैं ,हम पाठकों को बताना चाहते हैं कि यहाँ इस ब्लॉग पर मनोरंजन के लिए कुछ नही उपलब्ध होगा ,दर्द खरीदना चाहते हैं अपने देश वासियों के लिए तो यहाँ आयें )
सुबह, दरवाजे पर
जहाँ रोज खड़ा रहता है डर
घर भर में घूमती होती है ...
आशंकाएं, भय, खौफ
ऐन इसी वक्त रोज
कलम और ब्रश गुम हो जाते है
मेरी गिटार कोई उठा ले चूका होता है ,
ये कलम, ये ब्रश, ये गिटार .....
कुछ भी हो सकती है ......
एक गहरी चुप्पी, एक अंतहीन घना जंगल ,
कोई जलता हुआ शहर,
नपुंसक आर्मी के बूटो से कुचलता मानवाधिकार,
पंगुओं और बौनों की चीख भरी भीड़....या
जहरीले सापों की पिटारी
लेकिन कलम, ब्रश और गिटार से इन
गुमशुदगी का
सुराग पाना लाज़मी नहीं..
होठ पे होठ चढ़ा लेना इनकी आदत है
इस तरह रोज आसाम में
भय दरवाजे के पीछे दुबका रहता है
वर्तमान घर में फूफाकारता रहता है...
और भविष्य
पिछवाडे बबूल या ताड़ के निचे घुटनों में माथा गडाएँ छुपा रहता है
ऐन इसी वक़्त रोज
एक चिडियां मेरी मेज़ पर पड़े दर्पण में
लगातार ठोकरे मारती है..
ठक......ठक.....ठक.....
और मैं किंकर्तव्यविमु़ढ़, भौचक्का ,सहमा, हताश..
डूबते हुए सूरज को देखता रहता हूँ ...........??????????
राकेश पाठक
ब्यावर,अजमेर
bahut khoob!
जवाब देंहटाएंएक चिडियां मेरी मेज़ पर पड़े दर्पण में
जवाब देंहटाएंलगातार ठोकरे मारती है..
ठक......ठक.....ठक.....
और मैं किंकर्तव्यविमु़ढ़, भौचक्का ,सहमा, हताश..
डूबते हुए सूरज को देखता रहता हूँ ...........??????????
शायद ये समय किंकर्तव्य विमूढ़ होने का नहीं जाग्रत होने का है ,सूरज को डूबने न दीजिये ......
नित्य ही आह्वान करती उस चिड़िया का साथ दीजिये ,औरों को भी प्रेरित करिए ,मैं आपके साथ हूँ .........
sukriya jyotsana ji,
जवाब देंहटाएंsayad ham 8 saal se doobte hue sooraj ko hi dekh rahe the .....lekin aab nahi .................aap jaise logo ka hi saat chhiye .......jude aur jode ......kisi n kisi roop me aapna birodh is kanoon ke khilaph avasya kare....
dhanybaad comment ke liye..........
Rakesh Pathak
आपने अच्छा लिखा मेरे ब्लोग पर आने की जहमत उठाए। आपका स्वागत है।
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा
जवाब देंहटाएंकवितायें खुद अपना बयान हैं !
जवाब देंहटाएंbhai rakesh ko is behtar abhivyakti k liye mubarakbad!
जवाब देंहटाएंis blog ka pata abhi chala.afsos hai.
कमाल है कि इस कविता को भी पढ़ लेने के बाद भी लोगों{टिप्पणिकर्ताओं} का ध्यान ब्लौगर को अपने ब्लौग पर आमंत्रित करने में ज्यादा है और कविता के विषय-वस्तु पर कम।
जवाब देंहटाएंसोच रहा हूँ कि इनमें से कितने लोग इरोम से मिले भी हैं। मिलने की बात तो दूर जानते भी हैं उसके बारे में?