-आवेश
मेरी ये पोस्टिंग बहन शर्मीला को समर्पित है ,हम उनके सत्याग्रह का शत शत वंदन करते हैं ,और इश्वर से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें असीम शक्ति दे |
आसमान में बादल नही
चाँद खिला है माँ
पानी
बादल बरसाते हैं
चाँद नही
हम फ़िर छले गए -सावन के आसमान से
पीछे की पहाडी
कब हरी होगी माँ ?
कब आए थे पश्चिम के मेघ ?
नाले चल रहे होंगे आज भी शायद घर के पीछे
कब लौट कर आएगा वो लड़का
जो पहले गोलियों से खेलता था ,आज भी खेलता है
बादल कहीं नजर नही आते
मिटटी!
तुम्हारे चेहरे की भांति /सूखी हुई
और आँखें /टकटकी लगाये देखती हैं
निष्ठुर आसमान की ओर
कभी सूरज कभी चाँद मुँह चिढाते हैं माँ
हम बौछारों के मौसम में
धूप से बचाव के छाते लगाते हैं |
शनिवार, 2 मई 2009
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भावपूर्ण रचना हैं.
जवाब देंहटाएंहम बौछारों के मौसम में
जवाब देंहटाएंधूप से बचाव के छाते लगाते हैं |
wah
satya
abhi aisa hi haal ho reha hai oct ke mausam mein para 42 per ...wah kya bakhan kiya hai humare samay ka haal ..badhai