पिछले सप्ताह "कतरनें" में "मेरी बहन शर्मीला" पढ़ा। किसी भी संवेदनशील, मानवीय ह्रदय को झकझोर देने लायक सारी बाते थी इसमें । इस आलेख के लिए आवेश जी बधाई के पात्र है। इसे पढ़ते ही मन उद्वेलित हो उठा। व्यथित मन इतना ज्यादा कभी नहीं रोया था। तत्काल ही आवेश जी से बात हुई और शर्मीला के समर्थन में कुछ करने की इच्छा। मजदूरों के हक़ और अधिकार के लिए लड़ी गई लडाई के १२० वीं वर्षगाठ से अच्छा और क्या हो सकता था इसी का परिणाम है की आज यह ब्लॉग आपके सामने है ...........उसी रात लिखी एक कविता की पहली पोस्टिंग भी हुई।
इस ब्लॉग के माध्यम से हमें उन मुद्दों को उठाना है जो मानवाधिकार हनन से जुड़े हो तथा उन जैसे लोगो को एक मंच प्रदान करना है जिन्हें लगता है की उनकी आवाज गूंगी-बहरी सरकार और मीडिया नही सुन रही है वो अपना दर्द यहाँ बाँट सकते है। इस ब्लॉग से मैं उन सभी लोगो को आमंत्रित करता हूँ जिन्हें देश प्रिय हैं , जो भारत के है और भारत उनका है। जिन्हें गाँधी आज भी अच्छे लगते है। जो शर्मीला को जानते है व इसके लिए कुछ करना चाहते है, उसके समर्थन मे हर उठने वाले हाथ को ताकत देना चाहते है । कलम से ही सही ! यथासंभव जितना हो सके अधिक से अधिक लोगो तक, सरकार के पास और कानून नियंताओं तक यह बात पहुचाई जाए की विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र मे आज भी मानवाधिकार बूटों तले कुचला जा रहा है ,जहाँ मानवाधिकार सशस्त्र बल की रखैल बन आसाम में मुजरा कर रही हों , संगीनों के साए मे जहाँ बचपन घुट रहा हो। हथियारों के दम पर जहा गाँधी जी के बेटियों की अस्मत लूटी जा रही हो। महात्मा बुद्ध के विचार जहाँ हिचकी ले रहा हो । मानवाधिकार का यह खेल गाँधी के उस देश मे पिछले कई दशको से जारी है ................वहां कैसी सरकार.....???? और कौनसा मानवाधिकार ?????? बिगत आठ वर्षो से भारतमाता की एक बेटी उत्तर-पूर्व के लोगो के अस्मिता ,आत्म -सम्मान और गरिमा वापस दिलाने के लिए लगातार संघर्षरत है। क्या हमारा दायित्व नही बनता की उसके हाथ को मज़बूत करें ??? उसे नैतिक शक्ति दे ! मैं देश के उन युवायों से कवि पाश की इन पंक्तियों के साथ आह्वान करता हूँ की .......
सबसे खतरनाक होता है
मुर्दा शान्ति से मर जाना
न होना तड़प का !!
सव सहन कर जाना
सवसे खतरनाक होता हैं
हमारे सपनो का मर जाना
बिलकुल सही है हमें अपने सपनो को मरने नहीं देना है बलिक दूसरो को बुनने में मदद करना है। हम उनसभी से आह्वान करते है की उत्तर-पूर्व में जबतब लागु कर दिए जाने वाले सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून -१९५८ को पूर्णतः हटाने के लिए पिछले आठ सालो से भूख हड़्ताल पर बैठी "इरोम शर्मीला" के समर्थन में आगे आयें। अपने तरीके से विरोध दर्ज कराये। उसे ताकत दे ,उसके गांधीवादी तरीके के पक्ष में खड़े हो सरकार को झूकने को मजबूर करे . पत्र लिखे, नुक्कड़ पर जुटे, गोष्टी करे, शिकायत करे. दोस्तों को बताये की इरोम शर्मीला के साथ क्या हो रहा है??? हमें आपनी आवाज विश्व पटल तक पहुचानीं हैं ताकि महिला अधिकारों का, उनके अस्मिता की ,उनके अधिकारों के हनन को रोका जा सके। मै मानता हूँ की हर समय की अपनी चुनोतियाँ होती है चाहे वह यथार्थ चेतना, जनचेतना, जनांदोलन, जनमानस के लड़ी जा रही कोई लडाई ही क्यो न हो। हर समय अपने विचारो को अपने विचारो से ही मुठभेड़ होती रहती है। आज हम चका-चौंध और भागदौड में इतने मस्त हो गए है की हमें अपने आसपास ,पड़ोस,देश समाज के बारे में सोचने की फुरसत ही नहीं । दो कमरे के फ्लैट में सिमटा आदमी आज स्थितिप्रज्ञ बन कर रह गया है आज सव सुरक्षित जीवन चाहते है लेकिन वाह्य यथार्थ के आतंक ने व्यक्ति को एक आयामी,कमज़ोर और पंगु बना दिया है हम जितने ही अपने आपको सुरक्षित करने का प्रयास करते है उतनी ही असुरक्षा और भय अपने आस पास बुनते रहते है बिना समाज को सुरक्षित किये हम सुरक्षित नहीं रह सकते ....जरुरी है समाज के मुद्दों पर पर कदमताल करना, अतः जागे ,उठे और शर्मीला की ताकत बनें खुद की न सोचकर देश, समाज की सोचे आज स्थिति यह है की
लोग संगमरमर हुए/ह्रदय हुए इस्पात
वर्फ हुई संवेदना ख़तम हुई सब बात।
हमें खुद के स्वभिमान को जगाना है दुष्यंत कुमार के शव्दों में ...
जम गयी है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए .......
आज शर्मीला अकेले अपने दम पर अपने भागीरथी प्रयासों से सरकार को नाको चने चबाने को मजबूर कर दिया है हमें भी चाहिए की उसका हाथ से हाथ और कदम से कदम मिलाकर साथ दे ।मैं एक बार फिर उन नवयुवको से ,छात्रो से आह्वान करता हूँ की जिस तरह सतर के दशक में देश में भूचाल ला दिया था आज दुवारा वो हुंकार भरे .... आज मै उस माँ को भी सलाम करता हूँ जिसने इतनी बहादुर, जांबाज,और दिलेर बेटी पैदा की।
कवि पाश की इन पंक्तियों के साथ की साथी हम लड़ेगे .........हम आपके साथ है .....
हम लडेंगे साथी,अपने स्वभिमान के लिए
जब बन्दूक न हुई तो तलवार होगी
जब तलवार न हुई ,लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ ,लड़ने की जरुरत होगी
हम लडेंगे जबतक
दुनिया में लड़ने की जरुरत बाकि है ....
हम लडेंगे ......???
की लड़ने के बगैर कुछ भी नहीं मिलता
हम लडेंगे की अभी तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेगे अपने सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जाने वालों की याद जिन्दा रखने के लिए
हम लडेंगे .....हम लडेंगे साथी
राकेश पाठक
बयावर,अजमेर
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